*भारतीय शास्त्रीय संगीत से संबंधित “सुर लय ताल” पुस्तक के लिए रचनाएं भेजी ईस्ट अफ्रीका से- निशा हर्षित शेठ*

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*भारतीय शास्त्रीय संगीत से संबंधित “सुर लय ताल” पुस्तक के मुख्य सम्पादक संगीतज्ञ- श्याम कुमार चन्द्रा जी के उक्त पुस्तक में शामिल होने के लिए संगीतज्ञ गुरूजी द्वारा संचालित विश्व संगीत पाठशाला सक्ती छत्तीसगढ़ में शामिल गुरुजी की एक प्रिय शिष्या व संगीत साधिका श्रीमती निशा हर्षित शेठ द्वारा दार ए सलाम, तंजानिया इस्ट अफ्रीका से प्रेषित “भारतीय संगीत की सामान्य परिभाषा” शीर्षक से एक सुंदर मुक्तक रचना प्राप्त हुई है।*

*”सुर लय ताल” पुस्तक के सम्पादक संगीतज्ञ- श्याम कुमार चन्द्रा गुरुजी द्वारा अपनी प्रिय शिष्या व उक्त रचना के रचइता श्रीमती निशा हर्षित शेठ को इस पुस्तक लेखन में शामिल करते हुए स्वीकृति प्रदान कर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी गई। उक्त रचना इस प्रकार से है :–*

*भारतीय संगीत की परिभाषा*
(मुक्तक)

संगीत की सामान्य परिभाषा, सिर्फ़ इतनी सी है।
लय, माधुर्य और सामंजस्य से, भावना को जताती है।।

गीत, ताल और नृत्य में वो, अपने विचार को दर्शाती है।
ज़िन्दगी के सुना पन में वो, संगीत से नई ऊर्जा पाती है।।

संगीत का जन्म वैदिक युग में, सामवेद के रूप में हुआ।
सृष्टि के हर कण में संगीत की, अनुभूति आकर्षक करती है।।

सात सुरों के लय से बना ये, संगीत हमें ख़ुशी देता है।
संगीत की अद्भुत देन हमारे, आंतरिक तनाव को राहत देती है।।

आजकल सब की ज़िंदगी, धूप और दौड़ भरी रहती है।
गीत हमारे दिमाग़ में नई ऊर्जा का, संचार कर दवाई का काम करती है।।

जब हम दर्द से घिरे होते है तब, संगीत उस दर्द को कम करती है।
संगीत वो थेरेपी है जो हमे, हर दिन ख़ुशी देती है।।

“सुर लय ताल” के बिना ज़िन्दगी ही, जैसे नीरस होती है।
दिल में छिपी भावना को, “सुर लय ताल” से तो वाचा मिलती है।।

बिना बोले सुर और नृत्य से, अपने दिल की बात जता पाते हैं।
दो दिल एक दूसरे के दिल को, समझ साथ निभाने का वादा करते है।।

संगीत की धुन हमे तन्हाई में भी, अकेले नहीं होने देती है।
अपनों के साथ को वो अपने, हर सुर में जीवंत रखती है।।

संगीत की सामान्य परिभाषा, जीवन की ख़ुशी ही है।
जिसके बिना मनुष्य के जीवन, जीने की कल्पना भी नहीं होती है।।

*”रचइता :–*
*श्रीमती निशा हर्षित शेठ*
दार ए सलाम, तंजानिया इस्ट अफ्रीका

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