*सुर लय ताल” नामक पुस्तक में शामिल श्रीमती अर्चना पाठक के सह सम्पादकीय रचनात्मक लेखन*

*सुर लय ताल” नामक पुस्तक में शामिल श्रीमती अर्चना पाठक के सह सम्पादकीय रचनात्मक लेखन*
हमर छत्तीसगढ़ न्यूज नारायण राठौर
*भारतीय कला संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन एवं सांस्कृतिक विकास कार्य किए जाने हेतु 02 जुलाई सन् 2000 को स्थापित श्याम संगीत सृजन संस्थान सक्ती छत्तीसगढ़ के संस्थापक व अध्यक्ष संगीतज्ञ- श्याम कुमार चन्द्रा जी द्वारा संस्थान के रजत जयंती वर्ष के पावन अवसर पर सम्पादित भारतीय शास्त्रीय संगीत से संबंधित “सुर लय ताल” नामक पुस्तक में शामिल श्रीमती अर्चना पाठक जी के सह सम्पादकीय एक बार अवश्य पढ़ें*
*सह संपादकीय-*
*”सुर तय और ताल मेरी दृष्टि में”*
संगीतज्ञ गुरुदेव श्याम कुमार चन्द्रा जी द्वारा संपादित “सुर लय ताल” नामक पुस्तक लेखन के सतत प्रवाह का परिणाम है।
सुर लय और ताल हमारे जीवन के विकास की धारणा से जुड़े हैं और ऐसा होना स्वाभाविक है क्योंकि संगीत प्रकृति से उपजा हुआ है। मनुष्य उसकी श्रेष्ठतम कृति है और इसमें वर्णित मानवीय मूल्यों के विविध रंग जीवन का निर्माण करते हैं।
पुस्तक का शीर्षक “सुर लय और ताल” बहुत अनूठा है जो जीवन के विकास की समुचित व्याख्या सी प्रतीत होती है। सुर अंतर्मन का आवरण है तो लय उसके जागरण का बोध और ताल संपूर्णता को नियंत्रित करने का व्याकरण।
कोई भी पुस्तक लेखक के जीवन के संघर्ष से अछूता नहीं होता क्योंकि जीवन कल्पनाओं को पूर्ण करने का मंच होता है उसकी यायावरी किसी झरने की तरह होती है रास्ते के धूप-छाँव और अनुभव आगे बढ़ते हुई नदी की तरह होते हैं जो क्रमशः आगे बढ़ने पर शांत होते जाते हैं किन्तु गतिशील बने रहते हैं इन अनुभवों में कभी ये बावरा मन बनकर संगीत की लहरों के तारों को छेड़ते हैं तो कभी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में तन-मन समर्पित करने वाले महान् विभूतियों का यशगान करते हैं। जीवन के इन प्रयोगों को लेखक ने बड़ी तन्मयता से संगीत के सप्तक में इसे इस तरह सजाया है जिसमें जीवन की यात्रा के प्रत्येक लहरों का सम्मान किया गया है।
पुस्तक को धर्मगुरुओं, श्रेष्ठ संगीतज्ञों, राजनीतिज्ञों, विचारकों, संत समाज के भक्तों, प्रतिष्ठापित लेखकों और नवांकुरों के विचारों से सजा कर इसे पठनीय बनाया है। लेखन की विविधता में विषयों का बहुत बड़ा योगदान होता है वर्णित रचनाएँ महान विभूतियों के यश कीर्ति को समेटे हैं। कहीं वो सरगम की धुन पर संगीत के सुरों की व्याख्या के जैसे हैं तो कहीं अधखिली कली के जैसे कविताओं की तरह। पूरी पुस्तक लेखक की जिज्ञासाओं को मिले अनुराग के प्रति भावपूर्ण कृतज्ञता के ज्ञापन का प्रकाशन लगता है जो वास्तव में इस पुस्तक के प्रति सम्मोहन के कारणों में प्रमुख हैं।
प्रायः संगीत से संबंधित पुस्तकें राग, गीत और भाव इत्यादि पर आधारित होती हैं किन्तु लेखक ने इसे जीवन वांग्मय के मंच से जोड़ कर नेपथ्य से आ रहे प्रत्येक स्वर को अनुसन्धान और विचारों की प्रयोगशाला में शोधित करके रोपित किया है यह अनूठा प्रयोग इसे प्रभावकारी बनाते हैं।
कुल मिलाकर गुरुदेव श्याम कुमार चन्द्रा जी ने इस पुस्तक में अतीत और वर्तमान की झाँकी को समेटते हुए लिखा है साथ ही इनकी जीवनी भी इस पुस्तक में सम्मिलित है जो सरलतम व्याख्या की मिशाल है।
तुलसी बाबा के शब्दों में-
*कीरति भनिति भूति भलि सोई।*
*सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥*
यह कृति वैसी ही प्रतीत होती है ।
*श्रीमती अर्चना पाठक ‘निरंतर’*
अम्बिकापुर, सरगुजा (छत्तीसगढ़)
संगीतज्ञ- श्याम कुमार चन्द्रा
रेलवे काॅलोनी सक्ती, छत्तीसगढ़
मो. नं.- 79994 51129.