*गगोरी सरपंच के साथ जातिसूचक गाली व धमकी का मामला: थाना ने SC-ST एक्ट की उपेक्षा कर दर्ज किया मामूली धाराओं में अपराध, कार्रवाई पर उठे सवाल*

*गगोरी सरपंच के साथ जातिसूचक गाली व धमकी का मामला:
थाना ने SC-ST एक्ट की उपेक्षा कर दर्ज किया मामूली धाराओं में अपराध, कार्रवाई पर उठे सवाल*
सरसींवा (सारंगढ़-बिलाईगढ़)/ :- ग्राम पंचायत गगोरी में 25 जुलाई को घटित एक गंभीर घटनाक्रम ने प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सरपंच गजपति जांगड़े (जाति: सतनामी, अनुसूचित जाति) ने तहसीलदार, पटवारी और ग्रामीणों की उपस्थिति में अवैध अतिक्रमण की शिकायत पर सरकारी जमीन की जांच के दौरान एक दबंग युवक छात्रपल पटेल और उसके पिता द्वारा सरपंच को जातिसूचक गालिया और धमकी देने का आरोप लगाया गया है। सरपंच ने इस गंभीर प्रकरण में घटना के दिन ही थाना सरसींवा में लिखित शिकायत देकर अनुसूचित जाति जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत सख्त कार्यवाही की मांग की थी। बावजूद इसके, पुलिस द्वारा 4 दिनों तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई। 29 जुलाई को जब एफआईआर दर्ज की गई, तो उसमें जातीय अपमान और धमकी जैसे गंभीर आरोपों को दरकिनार कर केवल भारतीय न्याय संहिता (BNS) की सामान्य धाराएं — 296 (शांति भंग करना), 351(2) (आपराधिक धमकी) और 3(5) (जो कि केवल “व्यक्ति” की परिभाषा से संबंधित है) — ही जोड़ी गईं। विशेषज्ञों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों का कहना है कि उक्त मामले में SC-ST एक्ट की धारा 3(1)(r) (सार्वजनिक स्थल पर जातिसूचक अपमान), 3(1)(s) (सरकारी कर्मचारी के रूप में कार्य कर रहे व्यक्ति का अपमान) और 3(2)(va) (अनुसूचित जाति व्यक्ति के खिलाफ अन्य अपराध) स्पष्ट रूप से लागू होती हैं। बावजूद इसके, पुलिस द्वारा इन धाराओं को न लगाना गंभीर लापरवाही और पक्षपात का संकेत देता है।
प्रश्न यह भी उठ रहे हैं कि आखिर थाना प्रभारी और विवेचना अधिकारी द्वारा शिकायत प्राप्त होने के बावजूद अपराध को दर्ज करने में देरी क्यों की गई? और जब दर्ज किया गया, तो गंभीर धाराओं को हटाकर केवल हल्की धाराएं ही क्यों लगाई गईं? इस मामले में अब शासन, जिला प्रशासन और पुलिस अधीक्षक की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। यदि अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के उल्लंघन को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया है, तो थाना प्रभारी और विवेचना अधिकारी पर स्वयं इस एक्ट की धारा 4 के अंतर्गत अपराध बनता है, जिसमें सरकारी पद पर रहते हुए कर्तव्यपालन में लापरवाही या जानबूझकर संरक्षण देना संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। लोगो का कहना है की इस मामले को जिला प्रशासन और पुलिस अधीक्षक को स्वतः संज्ञान मे लेते हुए सम्बंधित थाना प्रभारी और जाँच अधिकारी के विरुद्ध उचित कार्यवाही करनी चाहिए तथा तत्काल प्रभाव से निलंबन के साथ ही साथ उन पर विभागीय जाँच करनी चाहिए ताकि इससे जो शासन, जिला प्रशासन और पुलिस अधीक्षक पर खड़ा होने वाला सवाल है स्वतः निष्क्रिय हो जाये और गलत के साथ न देने दोषियों पर उचित कार्यवाही करने चाहे वाह विभागीय अधिकारी क्यों न हो जैसा उचित न्याय करने जैसा उदाहरण पेस हो सके।